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वन्य जीवन की सभी आश्चर्यजनक विविधता के साथ 'कान्हा राष्ट्रीय उद्यान' बाघ के निवास के लिए विशेष रूप में जाना जाता है। मध्य भारत मे ऊंचाईं पर बसा यह सबसे ख़ूबसूरत स्थान मंडला और बालाघाट ज़िलों में स्थित है। सन 1935 से आज तक देश के सबसे पुराने अभयारण्यों में से एक होने के साथ इस स्थान के वन्य जीवन के संरक्षण का एक लंबा इतिहास रहा है, जो वास्तव में गर्व की बात है। विश्व पर्यटन के नक्शे पर इस राष्ट्रीय उद्यान ने अपनी एक जगह बना ली है। बाघों के साथ बारसिंगा भी यहाँ का अनमोल रत्न है। किसी समय विलुप्त होने की दहलीज पर खडा दुर्लभ बारहसिंगा अब कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में अपने प्राकृतिक निवास स्थान में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.
इस अभयारण्य के दो वनमंडल हैं-
- कोर क्षेत्र
- बफ़र क्षेत्र
'कान्हा राष्ट्रीय उद्यान' का यह बाघ अभयारण्य 2051.74 वर्ग कि.मी. पर फैला है, जिसमें 917.43 वर्ग कि.मी. कोर, 1134.31 वर्ग कि.मी. बफ़र जोन और 110.74 वर्ग कि.मी. उपग्रह मिनीकोर क्षेत्र शामिल हैं। बाघ अभयारण्य के कोर क्षेत्र में मानवी गतिविधियाँ प्रतिबंधित की गई हैं और यहाँ बाघ को आजाद माहौल में घूमते हुए देखा जा सकता है। 'कान्हा राष्ट्रीय उद्यान' रेखांश 80 26 10 से 81 4 40 के बीच और अक्षांश 80 1 5 से 81 27 48 के बीच स्थित है।
इस राष्ट्रीय उद्यान से बंजर और हेलॉन नदियाँ बहती हैं, जिनमें से हेलॉन बारहमासी है। यहाँ बनाई गई कई टंकीयाँ और बाँध भी वन्य जीवन के लिए पानी की आपूर्ति के प्रमुख स्रोत हैं। उद्यान के अंदर फैला हुआ वन प्रमुखता से उष्ण कटिबंधीय नम पर्णपाती प्रकार का है। कान्हा में स्तनधारियों की 22 प्रजातियाँ है। यहाँ के अन्य निवासियों में चीतल, सांभर, भौंकने वाले हिरण, बारहसिंगा, काले हिरण, नील गाय और गौर जैसी हिरण और मृग की प्रजातियाँ पायी जाती हैं। अन्य निवासियों में सुस्त भालू तथा जंगली कुत्तें, सियार और धारीदार लकड़बग्घें जैसे शिकारी शामिल हैं।[1]
यहाँ पक्षियों की 300 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें मोर, इग्रेट (एक प्रकार के काले पक्षी), गाने वाले पक्षी, हरे कबूतर, गरुड़, बाज़, पेड़ पाई आदि शामिल है।
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