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थल सेना | नौ सेना | वायु सेना |
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फील्ड मार्शल | एडमिरल ऑफ़ फ्लीट | मार्शल ऑफ़ दी एयर फोर्स |
जनरल | एडमिरल | एयर चीफ़ मार्शल |
लेफ्टिनेंट जनरल | वाइस एडमिरल | एयर मार्शल |
मेजर जनरल | रियर एडमिरल | एयर वाइस मार्शल |
ब्रिगेडियर | कोमोडोर | एयर कोमोडोर |
कर्नल | कैप्टन | ग्रुप कैप्टन |
लेफ्टिनेंट कर्नल | कमांडर | विंग कमांडर |
मेजर | लेफ्टिनेंट कमांडर | स्क्वाड्रन लीडर |
कैप्टन | लेफ्टिनेंट | फ्लाइड लेफ्टिनेंट |
लेफ्टिनेंट | सब-लेफ्टिनेंट | फ्लाइंग ऑफिसर |
भारत में प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम का विकास इस प्रकार हुआ-
- 1967 में भारत ने अंतरिक्ष शोध और उपग्रह प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम प्रारम्भ किया और वर्ष 1972 तक रॉकेट रोहिणी-560 का परीक्षण कर लिया गया। रोहिणी-560 की मारक क्षमता लगभग 100 किलोभार के साथ 334 किलोमीटर दूर तक थी।
- 1979 में भारत ने पहली बार उपग्रह प्रक्षेपण यान 'एसएलवी-3' अंतरिक्ष बूस्टर का प्रक्षेपण किया।
- 1980 में 35 किलोभार वाले रोहिणी-1 उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया गया।
- 1983 में भारत के 'रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान' (डी आर डी ओ) ने एकीकृत प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम की घोषणा की जिसमें पाँच प्रक्षेपास्त्र विकसित किए जाने थे-
- पृथ्वी जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है।[3]
- पृथ्वी-1 जिसकी मारक क्षमता डेढ़ सौ किलोमीटर और क्षमता एक हज़ार किलोग्राम है। यह सेना के लिए है।
- पृथ्वी-2 जिसकी मारक क्षमता ढाई सौ किलोमीटर और क्षमता पाँच सौ किलोग्राम है। यह वायु सेना के लिए है।
- पृथ्वी-3 जिसकी मारक क्षमता साढ़े तीन सौ किलोमीटर और क्षमता पाँच सौ किलोग्राम है। यह नौसेना के लिए है।
- अग्नि जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है और जिसकी क्षमता डेढ़ हज़ार किलोमीटर है। यह एक हज़ार किलोग्राम भार वाला अस्त्र ले जा सकता है। इस प्रक्षेपास्त्र का पहला चरण एसएलवी-3 के ठोस ईंधन वाले मोटर का और दूसरा चरण तरल ईंधन वाले पृथ्वी का प्रयोग करता है।
- आकाश जो सतह से सतह पर मार करने वाला लंबी दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। यह 55 किलोग्राम वजन का अस्त्र ले जा सकता है और अधिकतम 25 किलोमीटर की दूरी तक यह एक साथ पाँच विमानों को निशाना बना सकता है।
- त्रिशूल जो सतह से सतह पर या सतह से हवा में मार करने वाला कम दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। इसकी मारक दूरी 50 किलोमीटर है और यह रडार के निर्देशों से कार्य करता है।
- नाग जो टैंक रोधी प्रक्षेपास्त्र है। यह लगभग चार किलोमीटर की क्षमता वाला प्रक्षेपास्त्र है और निर्देशों के लिए संवेदी प्रौद्योगिकी पर बना है।
- 1987 में भारत ने आधुनिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (ए एस एल वी) का परीक्षण प्रारम्भ किया। चार हज़ार किलोमीटर की क्षमता वाले इस प्रक्षेपण की क्षमता डेढ़ सौ किलोग्राम है। इसमें तीन उपग्रह प्रक्षेपण यान रहते हैं।
- 1988 में भारत ने 'पृथ्वी' की परीक्षण उड़ान का परीक्षण किया। भारत ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पी एस एल वी) के निर्माण की घोषणा की जिसकी क्षमता लगभग आठ हज़ार किलोमीटर थी। एक हज़ार किलो वजन की क्षमता के इस यान से एक टन का उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया सकता था। यदि इस यान को हथियार प्रणाली की भाँति किया जाए तो यह परमाणु अस्त्र को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक ले जाने में सक्षम है।
- 1989 में भारत ने अग्नि का परीक्षण किया और नवंबर में नाग का परीक्षण किया।
- 1994 के मध्य तक पृथ्वी-1 का प्रारम्भिक उत्पादन प्रारम्भ हो गया था। भारतीय सेना ने 100 पृथ्वी-1 प्रक्षेपास्त्र लेने का आदेश दिया जिसे उसकी 333 प्रक्षेपास्त्र ग्रुप के साथ तैनात किया जाना था।
- 1996 में भारत ने कहा कि वह 'भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान' विकसित कर रहा है। भारत की योजना जनवरी माह में रूस को जी एस एल वी के लिए सात क्रायोजेनिक इंजन देने की योजना थी।
- 1998 में भारत में 'भारतीय जनता पार्टी' ने 'पृथ्वी प्रक्षेपास्त्रों' का उत्पादन अधिक करने की योजना के साथ ही मध्यम दूरी के 'अग्नि प्रक्षेपास्त्र' विकसित करने का भी फ़ैसला लिया।
- क्लिंटन प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी ने अमेरिका में कहा कि भारत के पास 'सागरिका' नाम का समुद्र से जुड़ा प्रक्षेपास्त्र है। सागरिका की क्षमता 200 मील की है और वह परमाणु अस्त्र ले जाने में सक्षम है।
- 11 मई भारत ने त्रिशूल का सफल परीक्षण किया है। यह सतह से सतह और सतह से हवा में मारने वाला प्रक्षेपास्त्र है।
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